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Sunday, February 15, 2009

दर्द मिन्नत - कशे- दवा न हुआ

दर्द मिन्नत - कशे- दवा न हुआमैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
जमा करते हो क्यों रकीबो कोयक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहाँ किस्मत आजमाने जाएतू ही जब खंजर-आजमा न हुआ
कितने शीरीं है तेरे लब , की रकब-गालिया खाके बे-मजा न हुआ
है खबर गर्म उनके आने कीआज ही घर में बोरिया न हुआ
क्या वह नमरूद की खुदाई थीबंदगी में मेरा भला न हुआ
जान दी, दी हुई उसी की थीहक़ तो यह है की हक़ अदा न हुआ
रहजनी है कि दिलसितानी है लेके दिल दिलसिताँ खाना हुआ
कुछ तो पढिये कि लोग कहते हैआज ग़ालिब गजलसरा न हुआ
मिर्जा ग़ालिब

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